लो जी..
आज वो हमारे घर पे,
चाय के बहाने आ गए,
ज़ुबां पर लगाकर शहद ढेर सारा,
हमारे गमों पे मुस्काने आ गए..
वो जो पीठ पीछे करा करते हैं,
चुगली हमारी गैरों से,
खैरियत पूछने के बहाने,
हमारा मज़ाक उडाने आ गए..
अभी सीख ही रहे थे हम ढलना,
हालातों के सांचे में,
दिखाकर शानो शौकत अपनी,
हमारा दिल जलाने आ गए..
आदत से मजबूर हैं वो,
पैसे की खुमारी है,
दस के नोट का लालच देकर,
बच्चों को बहलाने आ गए..
पूछा नहीं जिन्होने कभी,
हम ज़िंदा भी हैं या मर गए,
सहानुभूति का मरहम लेकर,
ज़ख्मों को सहलाने आ गए..
जताकर भरोसा ज़िंदगी भर,
जिन्होने हमें धोखा दिया,
वो आज फिर से अपनेपन का,
एहसास दिलाने आ गए..
----🍁----
..संजू।।
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