Monday 18 December 2017

खामोश शाम..!!

शाम खामोश होने को है,
और रात गुफ्तगू करने को आतुर..
इस छत के नीचे ना जाने कितनी शामें,
ऐसे ही बीत चुकी हैं,
दीवारों को तकते हुए..

मेरी खिड़री के बाहर वाला वो पेड़,
आज भी आवाज लगाता होगा,
कुछ उड़ते परिदों को,
कि आओ ! बसेरा मिलेगा तुम्हें..
पर परिंदे उड़ जाते होंगे दूर उस ओर,
अपने साथी संग, सुनसान जंगल में,
और रह जाती होंगी पत्तों की चुप्पी..

आसमां तारों से भर चुका होगा,
सुबह की बदली का एक टुकड़ा,
बेतरतीब सा फैला छत पर,
कर रहा होगा इन्तज़ार चाँद का..
यकीनन ऐसे ही होती होंगी ना,
अब भी शामें...!!
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..एहसास..

Sunday 17 December 2017

एक एहसास..!!

करी सेवा जिसने मेरी उम्रभर,
अपना सुख चैन छोड़कर,
मैं निकम्मा, कभी एक ग्लास पानी भी,
उसे पिला ना सका..

मैं भी उसका सहारा हूँ,
ये एहसास कभी दिला ना सका,
मेरे लिये अपना घर छोड़कर आने वाली को,
मैं सुकुन के दो निवाले भी खिला ना सका..

नजरें उसकी थकी हुई आंखों से,
कभी मिला ना सका,
वो दर्द सहती रही खटिया पे कल रात,
और मैं उसे सहारा देकर उठा ना सका..

बीमारी में भी कभी,
बिस्तर से उसे शिफा दिला ना सका,
खर्च के डर से मैं कम्बखत,
उसे कभी बड़े अस्पताल ले जा ना सका..

जो जीवनभर प्यार के रंग,
पहनाती रही मुझे,
उसे दिवाली पर कभी,
दो जोड़ी कपडे दिला ना सका..

कल रात से लेकर अब तक सोच रहा हूँ,
जिसने मेरे लिये अपना जीवन लगा दिया,
उसके प्रति मैं अपनी ज़िम्मेदारी,
क्यों सही से निभा ना सका..!!
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एक एहसास..

Wednesday 30 August 2017

फालतू बात..!!

जुबां लड़ाता है मुझसे,
सवाल जबाब करता है,
आजकल मेरा बेटा,
शैतानियां बेहिसाब करता है..

छोटा है वो अभी,
अमीरी गरीबी कहां पहचानता है,
वो तो बस आए दिन,
नई नई चीज़ों की,
ख्वाहिशात करता है..

क्यों आते नहीं मेहमां घर पे,
क्यों जाते नहीं हम कहीं घूमने,
दिनभर बस इसी तरह के,
आड़े टेड़े सवालात करता है..

मेरी समझाईशों को अभी वो,
शायद समझ नहीं पाता,
सोचता होगा कैसा बाप है,
शेरो शायरी में हर बात करता है..

मेरी बातें तो अक्सर,
घरवाली को भी समझ नहीं आतीं,
कहती है पागल हो गया ये आदमी,
दिनभर पड़ा जाने क्या क्या,
बकवास करता है..!!
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    संजू

Sunday 6 August 2017

टूटा हुआ दिल..!!


कोई कैसा है हम सफर,
ये अंदाज़ा मत लगाओ,
वक्त बता देगा खुद ब खुद,
तुम बस अपना फर्ज़ निभाओ..

जो मतलबों की यारी है,
जो उम्मीदों के रिश्ते हैं,
डूब ही जाने हैं एक दिन,
जब चलेगी मुसीबतों की नाव...

ये ज़रूरी तो नहीं है,
कोई हमेशा ही रहे साथ,
ये सफर की दोस्ती है साहेबान,
इसे रोग मत बनाओ...

बहुत मिल जाऐंगे ज़िंदगी में
खुशी में साथ देने वाले,
मगर साथी तो वही है सच्चा,
जिसको दिख जाऐं तुम्हारे घाव..

मिल चुकी है कई बार,
वफादारी की सज़ा मुझे,
फिर से भरोसे की उम्मीद देकर,
मेरे ज़ख्मों को ना सहलाओ..

धोखे के अनगिनत तीरों से,
बिखर चुका है वज़ूद मेरा,
भूल गया हूँ खुद को कब का,
मुझे आईना मत दिखाओ..

कोई कैसा था, कोई कैसा है,
हर इंसान अलग है यहां,
जिनसे तुम्हारा दिल ना मिले,
उनसे हाथ भी मत मिलाओ..

मुझे क्या हक है साहेब,
कि मैं किसी और से खुशियां मांगू,
मैं दर्दो गम में जी लुंगा अपने,
मुझे हमदर्दी मत जताओ..

सुना है महारत हासिल है तुम्हें,
रिश्ते तोड़ने और जोड़ने में,
ये रहा मेरा टूटा हुआ दिल,
ज़रा इसे जोड़कर दिखाओ..
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Friday 4 August 2017

कैसे चलेगा..!!!!


इस कदर ना किसी को सताया करो,
वक्त पर कभी तो मिलने आया करो..

बड़े मशरूफ रहते हो, ये मालूम है मगर,
कभी तो हमें भी याद कर जाया करो.

भले सामने हो तुम्हारे कोई भी कश्मकश,
हालात ए दिल अपना, हमें भी सुनाया करो..

ये माना कि रहते हैं तुम्हारे घर से बहुत दूर हम,
मगर हाल हमारा, कभी तो पूछ जाया करो..

पहले झांको तुम अपने दिल में,
उंगलियां यूं ना हमपे उठाया करो..

शायरी करने से तो पेट भरने वाला नहीं,
कैसे चलेगा साहेब.. कुछ तो कमाया करो..!!
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एहसास-ए-मोहब्बत..!!


यकीनन उधर तो होती होगी,
मगर इधर नहीं होती,
मुझे बाहर की दुनिया की,
कोई खबर नहीं होती..

अंधेरा ही रहता है,
हरदम मेरे आसपास,
रात आकर गुज़र जाती है,
मेरी मगर सहर नहीं होती..

मैंने सब दुख जहाँ के देखे हैं
बेकद्री भी इस कदर नहीं होती,
ज़ख्म दिल का भरता नहीं दिखता,
कोई आह इतनी बेअसर नहीं होती..

जुगनू हैं, चाँद है, सितारे हैं,
शमा कोई रातभर की नहीं होती,
बेकरारी अब सही नहीं जाती,
तन्हाई किसी की हमसफर नहीं होती..

मुंतज़िर हूँ मैं कब से,
एहसास-ए-मोहब्बत का,
अब साथ चाहिये किसी का साहेब,
यूं अकेले ज़िंदगी बसर नहीं होती..!!
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Saturday 29 July 2017

यकीन..!!


जो ख्वाब देखा है तूने,
वो कभी तो संवर जाएगा,
मगर यूं छोड़ेगा हौंसला,
तो एक दिन बिखर जाएगा..

बोलकर मीठी बोली,
आवाज तो दे किसी को,
वो साया बनकर तेरी,
राहों में उतर जाएगा..

इसे ले लेने दे,
इम्तेहान तो रोज़ लेती है ज़िन्दगी,
तज़ुर्बों की आग में तपकर ही सही,
तू कुंदन बन ही जाएगा..

बात दिल में जो है,
उसे दिल में ही रहने दे,
देखना वक्त खुद,
सारी उलझनों को कुतर जाएगा..

तेरी ज़िन्दगानी भी एक दिन,
ज़रूर होगी रौशन,
सुबह होगी जब तेरी,
ये अंधेरा गुज़र जाएगा..

उदास मन से ना देखा कर,
यूं आईना हर रोज़,
वर्ना देखना तू कभी,
अपनी ही सूरत से डर जाएगा..

माना मुद्दते गुजरीं तेरी रो रोकर,
मगर यकीन कर, जल्द आएगा वो दिन..
जब तेरा भी जीवन,
खुशियों से भर जाएगा..!!
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संजू..

Thursday 27 July 2017

भरा भरा सा दिल..!!


दिल अब भरा भरा सा रहता है,
मन अब थका थका सा रहता है..
सारा दिन उलझनों में उलझा,
दम अब घुटा घुटा सा रहता है..

हाथों में अब वो ताकत नहीं,
पैरों को राहों की तलाश नहीं,
अब तो मन चाहता है,
सुकून के दो चार पल,
और तन चाहता है,
बस कुछ इत्मीनान से बीते,
मेरा आज और कल..
खबर नहीं परसों की भी,
कौन करे बात बरसों की,
यूहीं बिन बुलाये चले आते हैं,
कुछ अनचाहे विचार आसपास,
होने लगा है अब कमजोरी का एहसास..

पहले की सी सुबह अब भी होती है,
सूरज चढ़ता है, शाम ढलती है,
पर नहीं अब दिल की हालत सम्भलती है,
सारा दिन उलझनों में उलझा,
मन अब थका सा रहता है..
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Wednesday 19 July 2017

अधूरा किस्सा..!!


जाड़ों की गुनगुनी धूप,
गर्मियों की शामें,
सब मुझे मायूस करते हैं,
मैं कुछ खो सा जाता हूँ,
कभी कुछ एहसास,
और कभी मेरे जज़्बात,
हावी होते रहते हैं दिल पर..

और फिर जब सावन आता है,
सब कुछ बह सा जाता है,
मुझे महसूस होता है,
खुद का खुद में सिमटना,
और दिल सुकूं सा पाता है..
मगर इन काले बादलों की गरज में,
मेरी ज़िन्दगी का एक अधूरा किस्सा,
हर बार अनसुना रह जाता है..!!
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Sunday 16 July 2017

खाली दिमाग शैतान की कार्यशाला..!!


अपने दीवारों दर से पूछते हैं,
खुद के हालात हम घर से पूछते हैं..

क्यूँ इस काफिले में रहकर भी अकेले हैं हम,
एक एक हमसफर से पूछते हैं..

कितने लोग रहते हैं मेरे मकान में,
ये बात हम शहर भर से पूछते हैं..

ये दीवारें क्यूँ खड़ी हुईं, मेरे और अपनों के बीच,
हम दिन रात अपने मुकद्दर से पूछते हैं..

कहां कत्ल हो गए मेरे चांद और सूरज,
हम हर रोज़ उठकर, सहर से पूछते हैं..

क्या ख्वाब देख लेना भी कोई जुर्म है,
बस यही हम ज़माने भर से पूछते हैं..

ये मुलाकात कहीं आखरी तो नहीं,
जुदाई के डर से ये बात, हर रहगुज़र से पूछते हैं..

सार खाली दिमाग शैतान की कार्यशाला..
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है कोई मेरे जैसा पागल..!!


धूप बहुत है मेरे शहर में,
सावन का मौसम भेजो ना,
पानी से भरा मेरे नाम का,
कोई तो बादल भेजो ना..

मेरे आंगन के उस पेड़ की,
शाखों पर भी फूल खिलें,
खुशियों से सजाकर इंद्रधनुष सा,
सतरंगी आंचल भेजो ना..

क्यों मन के मंदिर में इनके,
अब तक ये उदासी पसरी है,
जिसे देख चहक उठें ये नन्हे मुन्ने,
उन मोरों के पेरों की पायल भेजो ना..

खामोशी के इस मंजर में,
बूंदों की आवाज़े गूंज उठें,
मेरे शहर की गलियों में भी,
बाज़ारों की हलचल भेजो ना..

चुप रहने की मुझे आदत नहीं,
मैं बोलने का आदी हूँ,
पर आखिर किस से बात करूँ,
मेरे जैसा कोई पागल भेजो ना..!!
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..संजू।।

Friday 14 July 2017

आईये 'साहेब' आपका इंतज़ार था...!!


लो जी..
आज वो हमारे घर पे,
चाय के बहाने आ गए,
ज़ुबां पर लगाकर शहद ढेर सारा,
हमारे गमों पे मुस्काने आ गए..

वो जो पीठ पीछे करा करते हैं,
चुगली हमारी गैरों से,
खैरियत पूछने के बहाने,
हमारा मज़ाक उडाने आ गए..

अभी सीख ही रहे थे हम ढलना,
हालातों के सांचे में,
दिखाकर शानो शौकत अपनी,
हमारा दिल जलाने आ गए..

आदत से मजबूर हैं वो,
पैसे की खुमारी है,
दस के नोट का लालच देकर,
बच्चों को बहलाने आ गए..

पूछा नहीं जिन्होने कभी,
हम ज़िंदा भी हैं या मर गए,
सहानुभूति का मरहम लेकर,
ज़ख्मों को सहलाने आ गए..

जताकर भरोसा ज़िंदगी भर,
जिन्होने हमें धोखा दिया,
वो आज फिर से अपनेपन का,
एहसास दिलाने आ गए..
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..संजू।।

Wednesday 12 July 2017

कल रात..


कितनी पी कैसे कटी कल रात,
मुझे होश नहीं..
रात के साथ गई बात,
मुझे होश नहीं..

मुझको ये भी नहीं मालूम,
कि जाना है कहां,
थाम ले कोई मेरा हाथ,
मुझे होश नहीं..

आंसुओं और शराबों में ही,
गुज़र रही है अब तो,
मैंने कब देखी थी बरसात,
मुझे होश नहीं..

टूटा हुआ पैमाना है दिल मेरा 'साहेब'
बिखरे बिखरे से हैं खयालात,
मुझे होश नहीं..
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जानता हूँ मुश्किल है..


जानता हूँ मुश्किल है,
मगर करके दिखाना है,
अब मुझको मेरी हदों के पार जाना है,
दर्द चाहे कितना भी हो,
अाज मुझको बस मुस्कुराना है..

दर्द का असर जब,
आँखों में उतर आएगा,
मुस्कुरा लुंगा थोड़ा सा,
फिर वक्त गुज़र जाएगा,
ये रूठी हुई सी जो हँसी है,
आज उसको मनाना है,
दर्द चाहे कितना भी हो...

तन्हाई है, बेबसी है,
मुस्कान को तरसे हैं,
जाने कितने ही सावन,
मेरी आँखो से बरसे हैं,
ये माना कि इन आँखों से,
आंसुओं का रिश्ता पुराना है,
मगर दर्द चाहे कितना भी हो,
आज मुझको बस मुस्कुराना है..

हदों में बंधकर,
जीवन नहीं जीना,
ज़हर मुझे अश्कों का,
अब और नहीं पीना,
हर दुख हर तकलीफ को,
बर्दाश्त करते जाना है,
दर्द चाहे कितना भी हो,
आज मुझको बस मुस्कुराना है..

क्यूँकि 'साहेब'...
अब मुझको मेरी हदों के पार जाना है..
----🍁----
..संजू

वो क्या करेगा..

एक अपाहिज से भला,
कोई प्यार क्या करेगा,
जीना अपना कोई,
जानबूझकर दुश्वार क्या करेगा..

वो जो किसी के भी,
किसी मतलब का नहीं यहां,
उसके चक्कर में कोई,
अपना वक्त बेकार क्या करेगा..

जो किसी को दुख के सिवाय,
कुछ और दे नहीं सकता,
उसके साथ भला कोई,
खुशियों का व्यापार क्या करेगा..

ज़िन्दगी की दौड़ में,
पीछे अगर छूट जाए कोई,
ऐसे इंसान का सहयोग,
ये संसार क्या करेगा..

जीवन की मुसीबतें से,
आखिर कब तक लड़ेगा वो,
टूट जाएगा एक दिन 'साहेब'
जिसके अपने ही तोड़ दे उसे,
फिर वो लाचार क्या करेगा..!!
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..संजू

Tuesday 11 July 2017

किसी का साथ चाहिए..

लड़खड़ाती हुई ज़िंदगी को,
थामने वाला हाथ चाहिए,
कुछ वक्त के लिए ही सही,
मगर किसी का साथ चाहिए..

भला कब तक समेटे पड़ा रहूँ,
खुद को इस तन्हाई में,
इस अकेलेपन से मुझको अब,
थोड़ी निज़ात चाहिए..

कोई मन का मीत नहीं है,
प्यार का संगीत नहीं है,
जीवन के इस बेसुरे राग को,
अब कोई साज़ चाहिए..

यूं अकेले रहकर भला,
किस तरह से बसर हो,
कोई तो हो 'साहेब'
जो मेरा भी हमसफर हो,
उलझी हुई जीवन की राहों में,
अब सुलझे हुए हालात चाहिए..

कुछवक्त के लिए ही सही,
मगर किसी का साथ चाहिए..
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मूड स्विंग..


अकेले हैं कमरे में बड़बड़ा रहे हैं,
अपने आप से ही हम लड़े जा रहे हैं..

अंदर से बहुत खुश हैं वो बेबसी पर हमारी,
जो बाहर से सहानुभूति दिखा रहे हैं..

ये कैसी मुसीबतों की आँधी चली है,
जलाए थे जो दिये, वो बुझे जा रहे हैं..

जो लिखा है तकदीर में, वो तो होकर रहेगा,
बस यही सोचकर हम जिये जा रहे हैं..

खैर छोड़ो, बारिश हुई है पकोड़े बने हैं,
अभी चाय और चटनी से वही खा रहे हैं..

अब ज़िंदगी की चिंता फिर कभी कर लेंगे साहेब,
अाज तो सुहाने मौसम के मज़े आ रहे हैं..!!

मूड स्विंग..
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हद है साहब..

हम अपने मन की बात छुपाने लगे,
चलो कोई नहीं...
अब एहसास से भी जी चुराने लगे,
ये तो हद है...

कुछ अपनों ने किया था,
वादा साथ निभाने का,
चलो अच्छा था...
अभी अभी आए थे जो सहारा देने,
वो लोग ही मुझे गिराने लगे,
ये तो हद है...

कुछ दोस्त हैं,
जो मिलने मिलाने की बात करते हैं कभी कभी,
ये तो अच्छा है...
फिर अचानक फोन उठाने से भी कतराने लगें,
ये तो हद है...

खामोशी सुनते थे,
कि महफिल से घबराती है,
सही है साहेब...
खामोशी अंदर अंदर शोर मचाने लगे,
ये तो हद है...!!
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महत्वपूर्ण क्या है..?

मित्रों एक प्रश्न पर विचार कीजिए..

ज़िंदगी में आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण क्या है..??

आपके दिमाग में जो- जैसे अच्छी नौकरी, मकान, स्वास्थ्य, परिवार, बैंक बैलेंस, बड़ी गाड़ी, नौकर-चाकर, बड़ा व्यवसाय, समाज में पहचान वगैरह- वगैरह..।
किन्तु क्या कभी आपने सोचा है, कि हमारे बीच में ही तमाम ऐसे लोग मौजूद हैं जिनके पास इस सूची से भी ज्यादा सुख- सुविधाएं उपलब्ध हैं। फिर भी उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें स्पष्ट देखी जा सकतीं हैं। वे बिना थके दिन रात निरंतर मेहनत करते जाते हैं। सफलता के नित नए पैमाने गढ़ते जाते हैं। एक लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद दूसरा लक्ष्य, फिर तीसरा, चौथा और इसी तरह जीवन में आगे बढ़ने की भूख में सब कुछ भुला देना।

कभी-कभी हमें लगता है कि पैसे से हर खुशी हासिल की जा सकती है। स्वयं को कामयाब सिद्ध करने के चक्कर में हम अपने स्वास्थ्य, अपने शौक, समाज, प्रेम और प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही कितनी ही अन्य महत्वपूर्ण खुशियों की बलि चढ़ा देते हैं।
पहले पैसा कमाने के लिए स्वास्थ्य और खुशियों को दांव पर लगाते हैं, फिर इन्हें पाने के लिए पैसा खर्च करते हैं। क्या इसी का नाम Success है..? क्या यही जिंदगी है..?
जो जवाब आएं उन्हे एक कागज पर लिखते जाइए। इस प्रकार संभव है आपके पास उन चीजों की एक लंबी सूची तैयार हो जाए, जिन्हें आप अपने जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते हैं।

अब उस सूची पर एक बार फिर से एक नजर डालिए और सोचिए उन वस्तुओं से हमें क्या हासिल होगा? क्यों चाहिए वे हमें? इस प्रश्न का सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर हो सकता है प्रसन्नता, सुकून और प्रेम।
बेशक, समय के साथ सफलता का अर्थ बदलता रहता है किन्तु फिर भी मानव जीवन का प्रमुख लक्ष्य होता है, खुशी और संतुष्टि प्राप्त करना।
इसके लिए ही हम अनेक साधन जुटाते हैं। क्या आपको नहीं लगता कि हर असफलता के पीछे यही प्रमुख उद्देश्य होता है..?
अत: जब भी अवसर मिले दिल खोलकर खुशी मनाइए, अन्यथा और लंबी सूची बनाने के चक्कर में, जो है उसका भी आनंद उठाने से वंचित रह जाएंगे।
प्रसिद्ध आध्यात्मिक चिंतक, प्रेरक वक्ता और लोकप्रिय पुस्तक Unposted Letter के लेखक ‘Mahatria Ra’ कहते हैं...
“जीवन में खुश रहने का फैसला करो, खुश रहने को अपने जीने का तरीका बनाओ”

आपकी सूची लंबी हो या छोटी, उससे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। जो है, जितना है, जब भी है, जैसा भी है उसके साथ ही हर पल जीवन का जश्न मनाइए ।

Monday 10 July 2017

बरसात में स्वास्थ्य को लेकर बरतें खास सावधानी





आजकल बरसात का मौसम है तो ऐसे में कई प्रकार की बीमारियों के होने का खतरा भी बना रहता है। ऐसे में स्वास्थ्य को लेकर सावधान रहना बहुत जरूरी है। बारिश के मौसम में अक्सर हम लोग गंदे हाथों से कुछ भी खा लेते हैं जिस वजह से वे कई प्रकार की बीमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता हैं। इस मौसम में गंदे पानी और खाद्य पदार्थों से भी कई बीमारियों के होने खतरा बढ़ जाता हैं जैसे दस्त, हैजा, टाइफाइड, और फूडपाइजनिंग आदि। बरसात के मौसम में पानी के साथ-साथ हवा भी दूषित हो जाती है जो सीधे जीवाणु के रूप में आपके अंदर जाकर फ्लू, जुकाम और ब्रोंकाइटिज जैसे रोग उत्पन्न करती है।

*बरसात के मौसम किस प्रकार के रोग और समस्याएं होने की संभावना बढ़ जाती है?*
बरसात अपने साथ कई तरह के रोग और समस्याएं भी लेकर आती हैं। इस मौसम में पेट के अलावा स्किन और जुकाम, बुखार जैसी समस्याएं होना आम बात है। बरसात के मौसम में प्रदूषित व संक्रमित पानी पीने से हैजा, उल्टी व दस्त जैसी बीमारियों का खतरा रहता है। दस्त में पेट दर्द, और बुखार के साथ आंतो में सूजन जैसे लक्षण होते हैं। साथ ही पानी के प्रदूषित होने से त्वचा में चिपचिपाहट होने के साथ एलर्जी का होना, त्वचा संबंधी रोग, टाइफायड बुखार, मच्छरों से होने वाली बीमारियों का भी डर रहता है। बरसात के समय में मच्छर
पनपने लगते हैं जिस वजह से डेंगू , मलेरिया और चिकुनगुनिया जैसे गंभीर रोग होते हैं। बदलते मौसम में मच्छरों की वजह से डेंगू की बीमारी अक्सर लोगों को होने लगती है। यह एक तरह का बुखार होता है जो डेंगू के मच्छर के काटने से होता है। इस रोग के मुख्य लक्षण सिर दर्द, बुखार, आंखों में दर्द, बदन में दर्द और जोड़ों में दर्द जैसे लक्षण होते हैं। इस रोग से बचने के लिए अपने घर के आस-पास गंदा पानी को जमा न होने दें। रात को सोते समय मच्छरदानी लगाकर सोएं। सबसे ज्यादा जरूरी है वो ये कि पानी हमेशा उबाल कर पीएं।

*क्या बरसात में आंखों के रोग होने की आशंका भी होती है?*
बरसात की वजह से आंखों में भी कई प्रकार के रोग लगने लगते हैं जैसे आई फलू यानि आंख आना आदि। जिस वजह से आंख लाल हो जाती है और सूजन की वजह से आंखों में दर्द भी होने लगता है। फलू से बचने के लिए साफ हाथों से ही आंखों को साफ करना चाहिए। अपने खुद के तौलिये से ही शरीर को पोछें। आंखों को दिन में 3 से 4 बार पानी से धोना चाहिए। यदि तब भी आंखों की ये बीमारी दूर न हो रही हो तो आँखों के विशेषज्ञ को तुरंत दिखाएं।

*फूड प्वाइजनिंग यानी खाने संबंधी बीमारियों के होने के कारण व लक्षण क्या हैं, इसके क्या उपचार हैं ?*
फूड प्वाइजनिंग संक्रमित भोजन करने से होता है। इस रोग में पेट में दर्द, उल्टी, बुखार आना व ठंड लगना आदि मुख्य लक्षण होते हैं। ऐसे में ग्लूकोज का पानी, शिकंजी, सूप, और पानी आदि का अधिक से अधिक सेवन करना चाहिए। इस बीमारी से बचने के लिए साफ सुथरा खाना ही खाएं। साफ बर्तन में ही भोजन रखकर सेवन करें। डॉ. से सही विचार-विमर्श लें।

*बरसात में पेट की बीमारी कितनी बढ़ जाती है?*
बरसात में दूषित खाने और पानी के इस्तेमाल से पेट में इन्फेक्शन यानी गैस्ट्रोइंटराइटिस हो जाता है। ऐसा होने पर मरीज को बार-बार उलटी, दस्त, पेट दर्द, शरीर में दर्द या बुखार हो सकता है।

*डायरिया क्या है? कारण , लक्षण व उपचार क्या हैं?*
डायरिया को आम बोलचाल की भाषा में लूज मोशन या दस्त भी कहा जाता है। डायरिया अपने आप में कोई रोग नहीं है, लेकिन यह कई रोगों की वजह बन सकता है। लोगों में गलत धारणा है कि डायरिया के मरीज को खाना-पानी नहीं देना चाहिए। यह खतरनाक है। मरीज को सिर्फ तली-भुनी चीजों से परहेज करना चाहिए। बाकी ताजा चीजों का इस्तेमाल बंद नहीं करना चाहिए।

दूषित खाना और पानी पीने से तमाम तरह के बैक्टीरिया हमारे शरीर के अंदर पहुंच जाते हैं, जिनकी वजह से डायरिया हो जाता है। बार-बार उल्टी-दस्त, पूरे शरीर में दर्द, कमजोरी व आलस्य, बुखार व सिर में दर्द होना डायरिया के प्रमुख लक्षण हैं। दस्त लगने की समस्या अक्सर बरसात के मौसम में हो जाती है। ये दूषित खाने पीने के सामान या गंदा पानी पीने से होता है। इस मौसम में ई कोलाई, साल्मोनेला, रोटा वायरस, नोरा वायरस का संक्रमण बढ़ जाता है। जिसके कारण पेट व आँतों में सूजन और जलन होकर उल्टी दस्त आदि की शिकायत हो जाती है। साधारण रूप से दस्त 4-5 दिन में ठीक हो जाते है।

*छोटे बच्चे में डायरिया की समस्या ज्यादा रहती है क्यों?*
छोटे दूध पीते बच्चे को दूध की बोतल की सफाई सही तरीके से ना होने के कारण दस्त हो सकते है। पानी हमेशा उबला हुआ ही पीना चहिये। दस्त की समस्याओं से बचने के लिए खाने पीने की चीजों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। विशेष कर बाहर पीने का पानी, चाट, गोल गप्पे, पानी पूरी, भेल पूरी, खुले में बिकने वाली मिठाइयां आदि दस्त की समस्या पैदा करने की वजह होते है। अतः इनके सबंध में सावधानी रखनी चाहिए। कटे हुए फल व सलाद आदि ज्यादा देर तक ना रखें। खाना खाने से पहले अपने हाथों को साबुन से धो लेना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा बाहर के खाने- पीने से परहेज करना चहिए।

डायरिया ग्रस्त व्यक्ति को उबला आलू, चावल का मांड, नींबू की शिकंजी, पका केला आदि आसानी से पचने वाले आहार थोड़ी मात्रा में लेने चाहिए। पानी में नमक, चीनी का घोल बनाकर थोड़ा-थोड़ा लगातार देते रहना चाहिए ताकि शरीर में पानी की कमी ना हो। और तुरंत डॉक्टर को दिखाना चहिए।

*बरसात के मौसम में किस प्रकार की सावधानियां व बचाव बरतने की आवश्यकता रहती है?*
बारिश में बार-बार भीगने से बचें। बारिश में भीग जाने पर गीले कपड़े ज्यादा देर नहीं पहन कर रखने चहिए। सूखे कपड़े पहने। खुले, हल्के और हवादार कपड़े पहनें। किसी व्यक्ति को जिसे सर्दी हो, अगर आप उसके संपर्क में आये हो तो हाथ ज़रूर धोएं। खट्टे फलों का सेवन करे जिससे प्रतिरक्षा प्रणाली बेहतर होती है। कमरों को सूखा और स्वच्छ रखें। गरम पानी पिएं और पानी जब भी पीना हो तो उबला हुआ पानी पीएं। मच्छरों से बचने के लिए कोइल, नेट इत्यादि उपयोग में लाएं। कपड़े धोते हुए उनमें साबुन न रहने पाए। ऐंटिबैक्टीरियल साबुन जैसे कि मेडसोप, सेट्रिलैक (Cetrilak) आदि से दिन में दो बार नहाएं। शरीर को जितना मुमकिन हो, सूखा और फ्रेश रखें। – पैरों और हाथों की उंगलियों में मॉइस्चर न रहें। लगाने वाली दवा भी कम लगाएं। उससे गीलापन बढ़ता है। उससे बेहतर पाउडर लगाना है। पानी खूब पिएं। इससे शरीर में गर्मी कम रहेगी। पेट साफ रखें। कब्ज न होने दें, वरना शरीर गर्म रहेगा। डायबीटीज के मरीज शुगर को कंट्रोल में रखें। फुटवेयर साफ रखें। सफाई का पूरा ध्यान रखें। खाने से पहले साबुन से हाथ धोएं। बाहर का कुछ भी खाते समय एहतियात बरतें, जहां तो हो सके बाहर के खाने बचें। खाने की चीजों को अच्छी तरह से पकाएं व ढककर रखें। फ्रूट जूस बाहर का न पीएं। साफ़ सब्जियों का सेवन करें,:पत्तियों वाली सब्जी को ठीक से धोएं।

*क्या इस मौसम में त्वचा की बीमारियों के होने का खतरा भी बना रहता है? इसके लिए किस प्रकार की सावधानी बरतने की आवश्यकता रहती है?*
बारिश के मौसम में त्वचा की समस्याएं सबसे ज्यादा होती हैं। फंगल व बैक्टीरियल इंफेक्शन, घमौरियां, रैशेज और शरीर पर दाने निकलने जैसी दिक्कतें आम होती हैं। इस मौसम में शरीर से पसीना ज्यादा निकलता है। उमस ज्यादा होने के कारण बैक्टीरिया और वायरस तेजी से सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में सफाई का ध्यान न रखने से समस्या बढ़ जाती हैं। इसके लिए सावधानी जैसे कॉटन के हल्के कपड़े पहनें, जो पसीना सोखें। बारिश में भीगकर आने के बाद साबुन से जरूर नहाएं। पैरो की उंगलियों के बीच की सफाई पर खास ध्यान दें।

खाने में खीरा और नींबू जैसी चीजों और हरी सब्जियों का इस्तेमाल ज्यादा करें। खूब पानी पिएं और तली-भुनी, बासी या बाहर की चीजें खाने से बचें। स्किन विशेषज्ञ से त्वचा की समस्याएं को लेकर जरुर संपर्क करें। पौष्टिक और उचित आहार स्वास्थ्य सम्बधी समस्याओ और मौसमी बीमारियों से बचाता है जबकि विषाक्त भोज हमे अपच ,दस्त , पेचिश ,हैजा ,खासी-जुकाम वायरल जैसी बीमारियों की चपेट में लाता है। अपनी दिनचर्या में फलो को तरजीह दें। इनमे मौजूद पौष्टिक और एंटीओक्सिडेंट तत्व ना केवल शरीर में उर्जा संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि शरीर से विषाक्त पदार्थो को बाहर निकालते है और संक्रमन से बचाव कर हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाते हैं।

पाचन क्रिया को दुरुस्त रख कर यह पेट की कई बीमारियों को दूर रखने में कारगर साबित होता है। सर्दी , बुखार और सांस सम्बधी कई संक्रमन विषाणुओं द्वारा व्यक्ति से व्यक्ति में फैलते रहते हैं। अगर आप सर्दी खासी से पीड़ित है तो खांसते छीकते वक्त अपने मुह और नाक को ढंके और वह टिशु या कपड़ा फेंक दे। भोजन और पेय सम्बधी उपयोग का पानी अच्छी तरह से उबालें। खाने को अच्छा पकाएं। फल और सब्जियों का सेवन ज्यादा करें।

Sunday 9 July 2017

मौसम की गुदगुदी..


सावन के इस सुहाने मौसम में,
कुछ तबियत सी उदास रहती है,
गला सूखा सूखा सा हो जाता है,
मुझे मोहब्बत की प्यास रहती है..

जब भी बादल घुमड़ते हैं,
मन मचल मचल सा जाता है,
बंज़र पड़ी है इस दिल की ज़मीन,
मुझे बारिश की आस रहती है..

कोई तो कर लो दुआ,
कि मुझे मोहब्बत नसीब हो,
मेरे दिल के जख्मों को भी,
थोड़े मरहम की तलाश रहती है..

मिले गर जो मौका,
तो खुद में छुपा लूँ उसको,
वो जो दिनभर 'साहेब'
मेरे आसपास रहती है..!!
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(खाली दिमाग-शैतान की कार्यशाला)

Saturday 8 July 2017

सौ ग्राम ज़िंदगी..


​100 ग्राम ज़िन्दगी...​

अगर कुछ भूल ना पाए,
तो खुद को भूल जाइये..!

जब तक हम खुद को याद रखते हैं,
हमारे साथ बीते हुए पल हम कभी नहीं भूलते...
शायद इसीलिए लोग ऐसी चीज़ों का सहारा लेते हैं,
जिससे वो खुद को भूल जाएँ,
या उसका वो दर्द कम हो जाए,
जो उसके सबसे करीबी ने दिया हो...

यह जिंदगी भी अजीब है...
जब कभी कोई उम्मीद बंधती है तो अचानक कोई ऐसी आंधी आ जाती है,
कि हम जीतते जीतते हार जाते हैं,
हम किसी चीज़ को बड़ा हल्का ले लेते हैं,
और यही हमारी कमजोरी बन जाती है..
हमारे पैरों में पड़ी हुई बेड़ियाँ,
हमारी मजबूरियां और हमारे साथ जुड़े हुए रिश्ते,
हमें वो चीज़ करने से एक दम रोक देते हैं, जिनके करने से शायद हम ऐसी दुविधा में फँस सकते हैं जिनसे हम भले ही निकल जाएँ, लेकिन हमारी शक्सियत पे ऐसा दाग लग सकता है जिसके लिये हमें जिंदगी भर पछताना पड़ सकता है,
हो सकता है वो चीज़ ना भी हो,
पर हमें फिर भी खुद को रोकना पड़ता है, अपने लिये नहीं बल्कि दूसरों के लिये,
जिनकी आस हमारे साथ जुड़ी हुई है..
हम खुद जिंदगी भर तड़पते रहें,
लेकिन हमारी वजह से कोई और तड़पे यह हमें गंवारा नहीं...

जिनके लिये हम इतना कुछ करते हैं,
क्या वो भी हमारी इतनी परवाह करते हैं ?

100  में एक  या दो ही होंगे जो हमारे दुख में हमारे साथ खड़े होंगे,
जब हम पर दुखों का पहाड़ टूटेगा,
तो हम पहाड़ के नीचे दबे होंगे,
कोई हमें निकालने की कोशिश नहीं करेगा.. इसलिए जितना भूल सकते हैं भूल जाइये,
चाहे वो आपकी जिन्दगी ही क्यों ना हो,
जो हो गया वो तो होना ही था,
जो हो रहा है वो भी होना ही है,
जो होगा वो भी होके रहेगा...
जब सब कुछ पहले से ही तय है,
तो फिर हम किस बात की चिंता कर रहे हैं..?

आँख बंद करके अपनी मन की आँखों से अपनी उजड़ी हुई पूरी दुनिया का तमाशा देखिये ना कि खुद तमाशा बनिए..
चुपचाप एक अंजान जिंदगी जियें,
जितना रोशनी में आयेंगे तो आपकी आँखें चुंधिया  जाएँगी,
खुद को अँधेरे में रखिये और मन का उजाला कभी खत्म ना होने दें,
सच में बड़ी मज़े से जिंदगी बसर होगी, आजकल तो अपना साया भी हमारा साथ नहीं देता,
किसी और का क्या गिला करें...

और अगर जियो तो जी भर के जियो,
लेकिन किसी और से उसकी साँसें छीनने की कोशिश मत कीजिये..
जो जैसा है उसे वैसा रहने दीजिये,
अगर वो आपको परेशान नहीं कर रहा,
तो आप कौन होते हैं दूसरों को ज़ख्म देने वाले..?
पहले अपने ज़ख्मों को तो भरिये,
जो आपको अपनों से मिले हैं,
जिन्हें आप खुशी का नाम देके छुपा रहे हैं...

किसी ने खूब कहा है...
​जब जब जिसे भूलने की कसम खाई है..​
​तब तब कुछ ज्यादा ही उसकी याद आई है..​
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यूहीं अकेले में..


यूहीं अकेले में सोचता हूँ कभी कभी,
कि अचानक जो बदल जाए मेरी जिंदगी,
तो क्या बात हो...
ख्वाबों ख्यालों में रोज मिलता हूँ जिनसे,
वो हकीकत में भी मुझसे मिलने आऐं,
तो क्या बात हो...

मतलब के लिए ही एक दूसरे को,
ढूंढ़ते हैं सब लोग यहां,
कोई बिन मतलब भी कभी मिल जाए,
तो क्या बात हो...
मौत के बाद तो,
सभी करते हैं तरीफ यहां,
मुझे जीते जी कोई टूटकर चाहे,
तो क्या बात हो...

वो लोग भी,
जो करते हैं नफरत मुझसे,
कभी जो आकर गले से लगाऐं,
तो क्या बात हो...
अपने ज़िंदा रहने तक,
जो खुशी ना दे सका किसी को,
वो किसी को मेरी मौत से मिल जाए,
तो क्या बात हो..

यूहीं अकेले में सोचता हूँ कभी कभी..!!
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सोचने में क्या जाता है..


कभी कभी....
सोचता हूँ मैं क्या देखूं..??

सूरज देखूं या चाँद देखूं,
धरती देखूं या आसमान देखूं,
तारे देखूं या नज़ारे देखूं,
फूल देखूं या बहारें देखूं,
दरिया देखूं या किनारे देखूं,
लहरें देखूं या सागर देखूं,
बारिश देखूं या बादल देखूं..

फिर आँख खोलकर,
मेरी तरफ ताक रहीं,
अपने कमरे की दीवारों को ही,
देख लेता हूँ 'साहेब'..!!

#बेबसी..
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दो बूंद..


बाहर बारिश की दो बूंद पड़ते ही,
अंतर्मन की दीवारों पर,
उतर आती है सीलन..
और जम जाती हैं,
बेबसी, लाचारी,
और नाकामियों की पपड़ियाँ..
फिर ये बिगाड़ देती हैं,
मेरी कोशिशों का चेहरा..

वक्त के गुज़रते लम्हों से,
हाथ पसारे माँगता हूँ मैं,
चंद खुशियों की वजह...

पर आसान कहाँ है..?
कि जो चाहूँ.. वही मिले मुझे...!
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..एहसास..

Friday 7 July 2017

इंतज़ार..


दिल के अन्दर, बहुत अन्दर...
उदासी का साया है,
हर दिन की तरह,
आज का दिन भी,
दिन दुखाने चला आया है..
दिन के गुज़रने का,
रात के आने का,
भला कब तक करें..

  "इंतज़ार"
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मुस्कुराते रहो..


परेशानियाँ किसके जीवन में नहीं आती..?
सबके जीवन में आती हैं,
सब परेशान होते हैं,
कुछ लोग इसके लिए तैयार रहते हैं, और इसका सामना कर,
अपनी उदास-बेरंग दुनिया में खुशियों के रंग भर देते हैं..
वहीं कुछ लोग ऐसी परिस्थितियों में हौसला छोड़ देते हैं,
और अपनी हालत को किस्मत के भरोसे छोड़ देते हैं,
उन्हें लगता है कि वो हार गए हैं..

लेकिनर उनकी नहीं होती,
जोकिसी कराया में असफल हो जाएँ,
हारते वो लोग हैं जो दुबारा प्रयास नहीं करते..

खुशियों का कोई शॉर्टकट नहीं होता, इसलिए अपने प्रयासों को और बढाइये,
और इसकी शुरुआत होती है एक मुस्कराहट से, ☺

अब आप मुस्कुरा देते हैं,
तो कई अद्भुत शक्तियां आपके अन्दर आ जाती हैं,
और आप सकारात्मक होकर आपने जीवन में आगे बढ़ने लगते हैं..

इसलिए सदा व्यस्त रहो..
मस्त रहो..
स्वस्थ रहो..
मुस्कुराते रहो..

Thursday 6 July 2017

जानें क्यूँ..



कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ,
बस जिये जा रहा हूँ..
यूहीं दिन उगता है,
यूहीं रात होती है,
मुझे तो ना सूरज दिखता है,
ना चाँद से मुलाकात होती है..
ना मैं कहीं उठकर जा सकता,
ना मेरी किसी से बात होती है..
वो जो मैं था,
वर्षों पहले कहीं छूट गया,
अपने आप को भी अब मैं,
मिल नहीं पा रहा हूँ,
बस जिये जा रहा हूँ..

ना मैं किसी के काम का,
रह गया बस नाम का,
मूल्य नहीं अब मेरा कोई,
शरीर मेरा बिना दाम का,
मन में तकलीफ है,
उठ रही एक टीस है,
घुट रहा हूँ अंदर अंदर,
मगर कुछ कह नहीं पा रहा हूँ,
बस जिये जा रहा हूँ..

होना है खड़ा मुझे पैरों पर,
नहीं रहना आश्रित गैरों पर,
मुझे भी बाहर जाना है,
लोगों का प्यार पाना है,
मुसीबतों से लड़कर,
अपने दम पर,
अलग संसार बसाना है,
मगर क्या करूँ 'साहेब'
इन दरो-दीवारों से निकल नहीं पा रहा हूँ,
बस जिये जा रहा हूँ..

कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ,
जाने क्यूँ..
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कल रात..


कुछ हसरतें,
जो दिल में मचलती रहीं..
कुछ ख्वाब,
जो आँखों में अटके रहे..
कुछ ख्याल,
जो ज़हन से निकल ना सके..

कल रात...

वो हसरतें,
फिर से सफर में रह गईं..
वो ख्याल,
फिर से मुंह मोड़ गए..
वो ख्वाब,
पलकों पर दम तोड़ गए..
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आजकल..


आजकल दिमाग रहता है,
मेरा कुछ अलग अलग सा,
कुछ भी सोचता रहता हूँ,
कुछ भी लिख जाता हूँ..
कभी आग को पी लेता हूँ,
कभी पानी से जल जाता हूँ..
ना चाह है मुझे खुशी की,
ना मुझे अब रंज है कोई,
है अलग ही एक रंग मेरा,
फिर भी बेरंग कहलाता हूँ..

मैंने खुद को कई बार,
पैरों पे चलते देखा है,
वैसे ऐसा तब होता है,
जब मैं कुछ ज़्यादा पी जाता हूँ..
किसी की दुआ और दवा,
अब कोई काम नहीं आती मेरे,
सब अपने घर में खुश हैं साहेब,
मैं अपने कमरे में चैन पाता हूँ..

बादल, बिजली जैसे शब्द,
अब मुझको बहुत सताते हैं,
लोग सावन का मज़ा लेते हैं,
मैं बूंदों से डर जाता हूँ..
मेरे अपनों की याद मुझे,
अक्सर बहुत रुलाती है,
जब छोड़ता है कोई हाथ मेरा,
मैं जीते-जी मर जाता हूँ..
-------🍁-------

Cervical Spinal Cord Injury C1-C8


Cervical spinal cord injury C1-C8

Cervical level injuries cause paralysis or weakness in both arms and legs, resulting in quadriplegia (also known as tetraplegia). This area of the spinal cord controls signals to the back of the head, neck, shoulders, arms, hands, and diaphragm.

Since the neck region is so flexible it is difficult to stabilize cervical spinal cord injuries. Individuals may be placed in a brace or stabilizing device.

All regions of the body below the level of injury or top of the back may be affected. At times, a cervical injury is accompanied by the loss of physical sensation, respiratory issues, inability to regulate body temperature, bowel, bladder, and sexual dysfunction.

मेरूरज्जू (रीढ़) का चोटिल होना..



मेरूरज्जु की चोट (एससीआई) में मेरूदंड में शामिल तंतुओं को नुकसान होना भी शामिल है, अधिकतर एससीआई कशेरूका कालम को आघात के कारण होते हैं जिससे मस्तिष्क से शारीरिक प्रणाली तक संदेशों के आदान प्रदान की मेरूरज्जु की दक्षता प्रभावित होती है। उक्त प्रणाली संवेदक, मोटर एवं आटोनामिक गतिविधियों का संचालन करती हैं, चोट से पहले स्तर तक।

मेरूरज्जु एवं मस्तिष्क, दोनों मिलकर केंद्रीय तंत्रिका तंतु (सीएनएस) की संरचना करते हैं। मेरूरज्जु शरीर की गतिविधियों एवं संवेदनाओं का समन्वय करता है।

मेरूरज्जु में न्यूरोंस तथा एक लंबी तंत्रिका अक्ष तंतु होती है। मेरूरज्जु के अक्ष तंतु मस्तिष्क से नीचे की ओर (अवरोही मार्ग में) तथा ऊपरी मस्तिष्क की ओर (आरोही मार्ग में) लेकर जाते हैं। इन मार्ग में अनेक अक्ष तंतु मेइलिन के नाम से जाने जाने वाले इंस्यूलेटिंग तत्व से कवर होते हैं । ये तत्व उन्हें सफेद जैसा आवरण प्रदान करता है, यही कारण है कि जिस क्षेत्र में वे पाये जाते हैं उसे व्हाईट मैटर कहा जाता है।

तंत्रिका कोशिका स्वयं भी, अपनी पेड़ जैसी शाखाओं जिसे द्रुमाश्म कहा जाता है और जो अन्य तंतु कोशिकाओं से संकेत ग्रहण करती हैं। ये मिलकर ग्रे मैटर का निर्माण करती हैं। यह ग्रे मैटर मैरूरज्जु के केंद्र में स्थित मधुमक्खीनुमा क्षेत्र में रहता है।

मस्तिष्क की तरह ही, मैरूरज्जु में भी तीन भाग या मेंबरेंस (पर्दे) होते हैं : पिया मैटर, आंतरिक परत एवं आरकोनाइड, एक मध्यम परत तथा ड्यूरा मैटर जो कि कठोर बाह्य परत है।

मैरूरज्जु का संगठन इसकी लंबाई के साथ खंडों में होता है। प्रत्येक खंड से तंत्रिकाएं शरीर के भाग विशेष से जुड़ी होती हैं। गर्दन या ग्रीवा क्षेत्र के खंडों को सी 1 से सी 8 के रूप में जाना जाता है और यह गर्दन, बांहों एवं हाथों को संकेतों का नियंत्रण करते हैं।

थोरेकिक या पीठ के ऊपरी हिस्से (टी1 से टी12) की तंत्रिकाएं धड़ एवं बांहों के कुछ हिस्सों को संकेत देती हैं। लंबर या रिब्स के ठीक नीचे मध्य पीटी क्षेत्र (एल1 से एल5) की तंत्रिकाएं नितंब तथा पैरों के संकेतों का नियंत्रण करती हैं।

और अंत में सेकर खंड (एस1 से एस5) जो लंबर खंडों के ठीक नीचे मध्य पीठ में स्थित होते हैं, ग्रोईन, टोईस तथा पैरों के कुछ हिस्सों को संकेतों का नियंत्रण करते हैं। मैरू के साथ साथ विभिन्न खंडों में मेरूरज्जु चोट के प्रभावों से यह संगठन परीलक्षित होता है।

मेरूरज्जु का परिचालन अनेक तरह की कोशिकाएं करती हैं। बड़ी मोटर तंत्रिका कोशिका में लंबे अक्ष तंतु होते हैं जो गर्दन, धड़ तथा लिंबस में स्केलेटल मांसपेशियों का नियंत्रण करते हैं। संवेदनशील तंत्रिका कोशिका को डोरसल रूट गैंगलियन कहा जाता है जो मेरूरज्जु के ठीक बाहर मिलते हैं। इन संवेदक तंत्रिका कोशिकाओं की तंत्रिकाएं मेरूरज्जु से सूचनाएं शरीर में ले जाती हैं। मैरूदंड इंटर, जो पूरी तरह से मेरूरज्जु के भीतर स्थित होते हैं, संवेदक सूचनाओं के एकीकरण तथा समन्वित संकेत पैदा करने में मदद करते हैं। इन संकेतों से मांसपेशियों का नियंत्रण होता है।

गलीया या समर्थक कोशिकाएं, मस्तिष्क और मेरूरज्जु में में बहुसंख्या में होती हैं और अनेक आवश्यक गतिविधियों को निपटाती हैं। एक तरह की गल कोशिका जिसे आले कहते हैं, मइलिन का निर्माण करती है जो अक्ष तंतु को इंस्यूलेट करती है और तंतु संकेत पारेषण की विश्वसनीयता तथा गति को बढाती है। एक अन्य गलीया, मेरूरज्जु के निकट होती है जैसे कि व्हील के निकट रिम एवं स्पोक्स, यह आरोही एवं अवरोही नर्व फाइबर ट्रेक के लिये जगह मुहैया कराती है।

एस्ट्रोकिट्स, ये बड़ी सितारे की आकृति की गलियन कोशिकाएं होती हैं जो तंतु कोशिकाओं के चारों ओर के द्रव को कंपोजिशन का नियमन करती हैं। छोटी कोशिकाओं को माइक्रोग्लीया कहा जाता है, ये भी चोट के समय में सक्रिय हो जाती हैं और बेकार उत्पादों का साफ करने में मदद करती हैं। ये सभी गलियन कोशिकाएं तत्वों का उत्पादन करती हैं जो न्यूरान सर्वाइवल का समर्थन करती हैं और अक्ष तंतु के विकास को प्रभावित करती हैं। हालांकि, ये चोट के बाद सुधार में बाधक भी हो सकती हैं।

चोट के बाद, बाह्य तंत्रिका तंतु (पीएनएस) की तंतु कोशिकाएं, या न्यूरोंस, जो लिंब, धड़ तथा शरीर के अन्य भागों को संकेत ले जाती हैं, खुद की मरम्मत में सक्षम होती हैं। हालांकि सीएनसी में चोटिल तंतु पुन: पैदा होने में सक्षम नहीं होते हैं।

मस्तिष्क एवं मेरूरज्जु की तंतु कोशिकाएं आघात का प्रत्युत्तर देती हैं और इनको पीएनएस की कोशिकाओं सहित शरीर की अधिकतर अन्य कोशिकाओं की तुलना में अलग तरह से नुकसान होता है। मस्तिष्क तथा मेरूरज्जु इस तरह के हड्डियों वाले घेरे में बने होते हैं जो उनकी सुरक्षा करता है, लेकिन यह उन्हें सूजन या जबरदस्त चोट से होने वाली दबावीय नुकसान के लिये वुलनेरबल बनाता है। सीएनएस की कोशिकाओं में मेटाबोलिज्म की दर काफी अधिक होती है और ऊर्जा के लिये रूधिर ग्लूकोज पर निर्भर करती है- इन कोशिकाओं को स्वस्थ कार्यसंचालन के लिये समुचित मात्रा में रक्त आपूर्ति की आवश्यकता होती है। सीएनएस कोशिकाएं विशेषकर रक्त प्रवाह में कमी (इस्चेमिया) के लिये संवेदनशील होती हैं।

सीएनएस का अन्य अनूठा फीचर 'रक्त-मस्तिष्क-अवरोध' एवं 'रक्त-मेरूरज्जु- अवरोध' होता है। ये अवरोध कोशिकाओं द्वारा सीएनएस में रक्त वैसल्स से बनते हैं। ये तंत्रिका तंतु में संभावित हानिकारक तत्वों के प्रवेश से बचाते हैं, साथ ही इम्यून प्रणाली की कोशिकाओं को भी। ट्रोमा में ये अवरोध हो सकते हैं, संभवत: मस्तिष्क एवं मेरूरज्जु में और नुकसान में योगदान के लिये। रक्त-मेरू-रज्जु अवरोध कुछ संभावित थेरेपेटिक दवाओं के प्रवेश को भी रोकता है।

अंतत:, मस्तिष्क एवं मेरूरज्जु में ग्लीया तथा एक्स्ट्रासेल्यूलर मेटरिक्स (कोशिकाओं के चारों ओर का पदार्थ) उससे भिन्न होता है जो बाह्य तंतुओं में होता है। पीएनएस तथा सीएनएस में ये सब भिन्नताएं चोट के प्रति उनके अलग अलग प्रत्युत्तरों में योगदान करती हैं।

पूर्ण एवं अपूर्ण
किसी 'पूर्ण चोट' एवं 'अपूर्ण चोट' में क्या अंतर है? जिस व्यक्ति को अपूर्ण चोट लगती है उसे चोट से नीचे के स्तर में कुछ स्पेयरड संवेदक या मोटर गतिविधियां होती हैं- इसमें मेरूरज्जु पूरी तरह से क्षतिग्रस्त या बाधित नहीं होती है। पूर्ण चोट में, नस या तंत्रिका में लगी चोट मस्तिष्क से आने वाले और चोट से नीचे शरीर के अंगों को जाने वाले हर संकेत को बाधित करती है।

किसी भी मेरूरज्जु चोट के बाद गतिविधियों या संचालन में सुधार की हमेशा उम्मीद रहती है, और आमतौर पर यह सच्चाई है कि अपूर्ण चोट वाले व्यक्ति के फिर से सामान्य होने के अवसर ज्यादा रहते हैं।

कोलोराडो में सभी नई मेरूरज्जु चोटों का एक व्यापक अध्ययन क्रेग हास्पीटल ने किया है। इसमें कहा गया है कि चोट के तुरंत बाद पूरी तरह लकवाग्रस्त होने के सात में से एक मामले में ही बाद में कामकाज या गतिविधियां सामान्य हो पाती हैं। लेकिन उन मामलों में जहां चोट के तुरंत बाद पैरों में कुछ गतिविधि होती है, के मामलों में चार में से तीन में उल्लेखनीय सुधार नजर आया।

लगभग गर्दन पर चोट के मामलों में लगभग 2/3 अपने पैरों में पिनस्टीक का तीखापन महसूस कर सकते हैं और बाद में चलने लायक शक्ति पा लेते हैं। गर्दन पर चोट लगने की स्थिति में, हल्के से स्पर्श को महसूस कर सकने वालों में, आठ में से एक बाद में चल सकते हैं।

जितनी जल्दी ही मांसपेशियां फिर से काम करना शुरू करेंगी, अतिरिक्त सुधार के उतने ही अधिक अवसर होंगे। लेकिन जब मांसपेशियां देरी से लौटती हैं- पहले कुछ सप्ताह के बाद - वे पैरों के बजाय हाथों में अधिक होंगी।

जब तक मांसपेशियों में अतिरिक्त गतिविधियां तथा कुछ सुधार होता है तो इस बात की संभावना अधिक रहती है कि और अधिक सुधार संभव है।

सुधार में जितनी अधिक देरी होगी, व्यापक सुधार की संभावना भी उतनी ही क्षीण होगी।

आंकडे़
अमेरिका में लगभग 4,50,000 लोगों को सतत अभिघातीय मेरूरज्जु चोटें होती हैं और अमेरिका में हर साल एससीआई के 10,000 नये मामले सामने आ रहे हैं। एससीआई के सभी मामलों में पुरूषों का हिस्सा 82 प्रतिशत तथा महिलाओं का प्रतिशत 18 है।

प्राय: मोटर वाहन दुर्घटनाओं में मेरूरज्जु चोटिल होती है। यही सबसे बड़ा एवं सामान्य कारण है। इसके अलावा कहीं से गिरने या हिंसक गतिविधियों में मेरूरज्जु को चोट लगना आम बात है। बच्चों तथा किशोरों में प्राय: खेलकूद गतिविधियों के कारण मेरूरज्जु को चोट लगती है। वहीं वयस्कों (विशेषकर निर्माण कार्यों में) कार्य संबंधी चोटों की बहुतायत: होती है।

मेरूरज्जु चोट के अधिकतर रोगी किशोर या नवयुवा होते हैं। इनमें लगभग 80 प्रतिशत पुरूष होते हैं। पुरूषों का यह आधिक्य 65 साल की आयु के बाद कम होता है। उक्त आयु में गिरने से मेरूरज्जु के चोटिल होने की घटनायें आम होती हैं। आधे से अधिक मेरूरज्जु चोट, ग्रीवा क्षेत्र में लगती हैं, गर्दन में। एक तिहाई चोटें थारेकिक क्षेत्र में होती हैं जहां पसलियां, मेरूदंड से जुड़ी होती हैं। शेष चोटें लंबर क्षेत्र में होती हैं जैसे कि पीठ के निचले हिस्से में।

फिलहाल, मेरूरज्जु चोटों के लिये कोई इलाज नहीं है। हालांकि, शल्यक्रिया एवं दवा चिकित्सकी क्षेत्र के मौजूदा अनुसंधान तेजी से आगे बढ रहे हैं। मेरूरज्जु चोटों के प्रभावों से उभरने के लिये चोट के विस्तार को रोकने वाली दवा चिकित्सा, डिकंपरेशन शल्य क्रिया, तंत्रिका कोशिका ट्रांसप्लाटेशन, तंत्रिका पुन:उत्पादन तथा जटिल दवा चिकित्सा सहित सभी तरीकों पर परीक्षण किया जा रहा है।

जाने वाले को कौन रोक सकता है..

ऐ मेरे दिल....

जो चला गया,
उसे जाने दे,
उसको याद करके अब,
खुद को बदहाल क्या करना..

तुझे पता है,
कि वो गलत नहीं मानेगा खुद को,
वही जवाब मिलेगा फिर से,
फिर ऐसे इंसान से सवाल क्या करना..

जानता हूँ तुझे दुख है,
कि धोखा दे गया वो तुझे,
और तेरे प्यार को भुला बैठा..
जो गया उसे जाने दे,
बिछड़ने वाले का ख्याल क्या करना..

जो बीत गया उसे भूल जाना ही,
तेरे वज़ूद के लिए अच्छा है..
कड़वी बातों को याद रखकर,
जीना मुहाल क्या करना..!
----🍁----

मेरा बेटा..


खाने नहीं देता,
कभी सोने नहीं देता,
मेरा बेटा कोई काम,
ठीक से होने नहीं देता..
कोई क्या समझेगा,
उसके दिल का दर्द 'साहेब'
कि पड़ौसी का बच्चा,
उसको खिलौने नहीं देता..

वो आप ही उठाता है,
ये रोज़ रोज़ की ज़िल्लत,
मगर ये बोझ,
किसी और को ढोने नहीं देता,
जाने कौन हैं,
उनसे तो मैं वाकिफ भी नहीं हूँ आज तक,
बंद कमरे में पड़ा हूँ 'साहेब'
ये अंधेरा मुझको,
किसी और से पहचान होने भी नहीं देता..!!
-----🍁-----

मैं खोटे सिक्के सा..


हड्डी टूटी रीढ़ की, जीवन भर विश्राम,
बिस्तर पर पड़े पड़े, कैसे होगा काम..

सिक्का खोटा हो गया, नहीं चला बाज़ार,
ऐसे में फिर कैसे मिलता, परिवार से प्यार..

परिजन संग बीता समय, पड़ा रहूँ दिन रात,
वैसे तो करते हैं सेवा, पर झुंझलाते बिन बात..

कुछ दिन मिलने आऐ थे, सुबह शाम कुछ लोग,
धीरे धीरे छोड़ गए सब, जब बढ़ता देखा रोग..

रिश्ते नाते टूट गए, छूट गए सब साथ,
किस्मत ने कुछ ऐसी बक्शी जीवन मे सौगात.. 

गम को रोते छत को तकते, बीत गए दिन रात,
ऐसा कोई ना मिला, जो थामता मेरा हाथ.. 

दर्द से लड़ते शब भर जगते, बीत गए कई वर्ष,
अंदर से आवाज़ यूं आई, अब करना होगा संघर्ष..

टेलिफोन पर साथी जुड़े, मिल गए दिल के योग,
यूँ तो खर्चा भी बढ़ा, पर अच्छा लगा सुयोग..

अब पढने का मौका मिला, तो नया लिखा कुछ रोज,
मिलतीं खुशियां लिखने से, दुख में सुख की खोज..

माता कहती थी मुझे, सुन लो एक विचार,
दुख भी आते हैं सदा, भाग्यवान के द्वार..

दर्द तो मिटता नहीं, पर हिम्मत करके आज..
सोचा आप सभी से मिलकर, कह दूँ दिल की बात..

दिया जलता आस का, मन में है विश्वास,
हार ना मानुंगा कभी, जब तक तन में सांस...
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ये दुनिया बड़ी निराली है साहब, यहां करीब बैठे खुद के अपने भी दर्द नहीं समझते और दूर बैठे कुछ अंजान लोग महसूस भी कर लेते हैं, मुसीबत आते ही सबसे पहले करीबी और खून के रिश्ते साथ छोड़ते हैं और कुछ अंजान बिना किसी रिश्ते के भी हाथ थाम लेते हैं।।

परिचय..


सुना होगा तुमने किसी से, कि दर्द की एक हद होती है..

मिलो हमसे, कि हम अक्सर उस हद के पार जाते हैं..


अक्टूबर 2009, सर्वाइकल इंजुरी.. ज़िन्दगी की मौत से जंग,

फिर एक लंबा संघर्ष और मौत को हराकर घायल ज़िन्दगी बिस्तर तक सिमटकर रह गई..

फिर शुरु हुआ दर्द और तन्हाई का दौर, बेबसी और लाचारी का दौर, पल पल करीब आती मौत को महसूस करने की लाचारी, मदद करने के डर से अपनों को एक एक करके खुद से दूर जाते देखने की मजबूरी...


कहते हैं कि भगवान जो कुछ भी हमारे साथ करते हैं हमारे भले के लिए करते हैं..

ज़िन्दगी सीखते रहने का नाम है, और इन सब तकलीफों और मजबूरियों ने इस दुनिया के वो रंग और चेहरे दिखा दिये जो शायद हर इंसान को देखने को नहीं मिलते..हम हमारे जीवन को सिक्के के एक पहलू को देखकर ही काट देते हैं, और दूसरे से अंजान रह जाते हैं।


मैं रिश्तों की आलोचना या अनादर करने के पक्ष में नहीं हूँ मगर बीते नौ सालों में लाचारी की जिंदगी जीते हुए बहुत कुछ सीखने और महसूस करने को मिला है, दरअसल इस दुनिया में माँ को छोड़कर..बाकी सब रिश्ते एक दूसरे से अपेक्षाओं के रिश्ते हैं, हर रिश्ता आपसे कुछ ना कुछ अपेक्षा रखता है,अगर आप किसी की अपेक्षा पर खरे नहीं उतरे तो उसका आपसे कोई रिश्ता नहीं है।


दोस्तों मैं कोई कवि नहीं हूँ इसलिये कोई कविता लिखना नहीं आता मुझे..मगर अपने उन जज़्बातों को जाहिर करने के लिए जिन्हे कोई सुनने और समझने वाला नहीं है, उनको क्योंकि मैं कलम भी नहीं पकड़ सकता तो अंगूठे की मदद से फोन में उतार देता हूँ और दिल कुछ हल्का हो जाता है।

वो जज़्बात जो मेरे कमरे में, मेरे अंदर ही दम तोड़ते हैं हर रोज़, फिर उनका ज़हर फैलने लगता है मेरे अंदर..तो लिख देता हूँ...


मेरे लिये ये शब्द ही मेरे ज़ख्मों का मरहम हैं 'साहेब'


लफ्ज़ों की बनावट मुझे नहीं आती दोस्तों..

बस दिल से लिखता हूँ, बड़ी

 सीधी सी बात है..