Thursday 6 July 2017

आजकल..


आजकल दिमाग रहता है,
मेरा कुछ अलग अलग सा,
कुछ भी सोचता रहता हूँ,
कुछ भी लिख जाता हूँ..
कभी आग को पी लेता हूँ,
कभी पानी से जल जाता हूँ..
ना चाह है मुझे खुशी की,
ना मुझे अब रंज है कोई,
है अलग ही एक रंग मेरा,
फिर भी बेरंग कहलाता हूँ..

मैंने खुद को कई बार,
पैरों पे चलते देखा है,
वैसे ऐसा तब होता है,
जब मैं कुछ ज़्यादा पी जाता हूँ..
किसी की दुआ और दवा,
अब कोई काम नहीं आती मेरे,
सब अपने घर में खुश हैं साहेब,
मैं अपने कमरे में चैन पाता हूँ..

बादल, बिजली जैसे शब्द,
अब मुझको बहुत सताते हैं,
लोग सावन का मज़ा लेते हैं,
मैं बूंदों से डर जाता हूँ..
मेरे अपनों की याद मुझे,
अक्सर बहुत रुलाती है,
जब छोड़ता है कोई हाथ मेरा,
मैं जीते-जी मर जाता हूँ..
-------🍁-------

No comments:

Post a Comment