Thursday 19 July 2018

कहने को अल्फाज़ नहीं है,
लिखने को जज़्बात नहीं है,
और दिमाग जैसे सो रहा है,
आज शायद मुझे कुछ हो रहा है..

हाथ पैरों में जान नहीं है,
करने को कुछ काम नहीं है,
सन्नाटा दिल में नश्तर चुभो रहा है,
आज शायद मुझे कुछ हो रहा है..

जिस्म में जैसे सांस नहीं है,
बिल्कुल भूख और प्यास नहीं है,
उल्टी का सा जी हो रहा है,
आज शायद मुझे कुछ हो रहा है..

जीवन का एहसास नहीं है,
इक पल का विश्वास नहीं है,
मन जाने कहां खो रहा है,
आज शायद मुझे कुछ हो रहा है..

बस यूं ही...
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Tuesday 10 July 2018

एक वक्त ऐसा आता है,
जब इंसान को तन्हाई से डर‌ नहीं लगता,
अकेले बैठना बुरा नहीं लगता,
आंखों से आंसू भी नहीं गिरते..
क्योंकि हम तब ऐसे हो जाते हैं,
कि कोई बात करे तो भी ठीक,
ना करें तो भी ठीक..!!
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कल रात एक सपना देखा,
सपने में अक्स अपना देखा,
चेहरे पर बड़ी खुशी थी,
मौसम भी बहुत प्यारा था,
वही सड़क वही चौबारा था,
जहाँ हम दोस्त बैठा करते थे,
अपनी अपनी बातें किया करते थे..

पर अफसोस जब नींद खुली,
ना सपना था, ना ही वो दोस्त,
बस वही यादें थीं,
जिनको याद कर‌ करके हम,
जिये जा रहे हैं,
और जीते रहेंगे,
जाने कब तक..!!
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अपनी हर तकलीफ को छुपाना आ गया है,
अब हमें झूठ मूठ का मुस्कुराना आ गया है..

अब परेशान नहीं कर सकेंगे ये ज़िन्दगी के ज़ख्म,
अब हमें हर दर्द को दिल में दबाना आ गया है..

जो निगाहें सामने हमारे उठती नहीं थीं कभी,
उनको भी अब आंखें दिखाना आ गया है..

अपना भला कैसे मान लूं अब मैं उनको,
जिनको चेहरे पे चेहरा लगाना आ गया है..

रिश्ते बौने हो गए हैं इस बदली हुई फिज़ा में,
कितना बद्तर अब ज़माना आ गया है..

दिल भले ही मिले ना मिले अब किसी से,
पर साहेब, हमें सबसे हाथ मिलाना आ गया है..!!
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