Thursday 6 July 2017

मैं खोटे सिक्के सा..


हड्डी टूटी रीढ़ की, जीवन भर विश्राम,
बिस्तर पर पड़े पड़े, कैसे होगा काम..

सिक्का खोटा हो गया, नहीं चला बाज़ार,
ऐसे में फिर कैसे मिलता, परिवार से प्यार..

परिजन संग बीता समय, पड़ा रहूँ दिन रात,
वैसे तो करते हैं सेवा, पर झुंझलाते बिन बात..

कुछ दिन मिलने आऐ थे, सुबह शाम कुछ लोग,
धीरे धीरे छोड़ गए सब, जब बढ़ता देखा रोग..

रिश्ते नाते टूट गए, छूट गए सब साथ,
किस्मत ने कुछ ऐसी बक्शी जीवन मे सौगात.. 

गम को रोते छत को तकते, बीत गए दिन रात,
ऐसा कोई ना मिला, जो थामता मेरा हाथ.. 

दर्द से लड़ते शब भर जगते, बीत गए कई वर्ष,
अंदर से आवाज़ यूं आई, अब करना होगा संघर्ष..

टेलिफोन पर साथी जुड़े, मिल गए दिल के योग,
यूँ तो खर्चा भी बढ़ा, पर अच्छा लगा सुयोग..

अब पढने का मौका मिला, तो नया लिखा कुछ रोज,
मिलतीं खुशियां लिखने से, दुख में सुख की खोज..

माता कहती थी मुझे, सुन लो एक विचार,
दुख भी आते हैं सदा, भाग्यवान के द्वार..

दर्द तो मिटता नहीं, पर हिम्मत करके आज..
सोचा आप सभी से मिलकर, कह दूँ दिल की बात..

दिया जलता आस का, मन में है विश्वास,
हार ना मानुंगा कभी, जब तक तन में सांस...
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ये दुनिया बड़ी निराली है साहब, यहां करीब बैठे खुद के अपने भी दर्द नहीं समझते और दूर बैठे कुछ अंजान लोग महसूस भी कर लेते हैं, मुसीबत आते ही सबसे पहले करीबी और खून के रिश्ते साथ छोड़ते हैं और कुछ अंजान बिना किसी रिश्ते के भी हाथ थाम लेते हैं।।

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