Saturday 8 July 2017

सौ ग्राम ज़िंदगी..


​100 ग्राम ज़िन्दगी...​

अगर कुछ भूल ना पाए,
तो खुद को भूल जाइये..!

जब तक हम खुद को याद रखते हैं,
हमारे साथ बीते हुए पल हम कभी नहीं भूलते...
शायद इसीलिए लोग ऐसी चीज़ों का सहारा लेते हैं,
जिससे वो खुद को भूल जाएँ,
या उसका वो दर्द कम हो जाए,
जो उसके सबसे करीबी ने दिया हो...

यह जिंदगी भी अजीब है...
जब कभी कोई उम्मीद बंधती है तो अचानक कोई ऐसी आंधी आ जाती है,
कि हम जीतते जीतते हार जाते हैं,
हम किसी चीज़ को बड़ा हल्का ले लेते हैं,
और यही हमारी कमजोरी बन जाती है..
हमारे पैरों में पड़ी हुई बेड़ियाँ,
हमारी मजबूरियां और हमारे साथ जुड़े हुए रिश्ते,
हमें वो चीज़ करने से एक दम रोक देते हैं, जिनके करने से शायद हम ऐसी दुविधा में फँस सकते हैं जिनसे हम भले ही निकल जाएँ, लेकिन हमारी शक्सियत पे ऐसा दाग लग सकता है जिसके लिये हमें जिंदगी भर पछताना पड़ सकता है,
हो सकता है वो चीज़ ना भी हो,
पर हमें फिर भी खुद को रोकना पड़ता है, अपने लिये नहीं बल्कि दूसरों के लिये,
जिनकी आस हमारे साथ जुड़ी हुई है..
हम खुद जिंदगी भर तड़पते रहें,
लेकिन हमारी वजह से कोई और तड़पे यह हमें गंवारा नहीं...

जिनके लिये हम इतना कुछ करते हैं,
क्या वो भी हमारी इतनी परवाह करते हैं ?

100  में एक  या दो ही होंगे जो हमारे दुख में हमारे साथ खड़े होंगे,
जब हम पर दुखों का पहाड़ टूटेगा,
तो हम पहाड़ के नीचे दबे होंगे,
कोई हमें निकालने की कोशिश नहीं करेगा.. इसलिए जितना भूल सकते हैं भूल जाइये,
चाहे वो आपकी जिन्दगी ही क्यों ना हो,
जो हो गया वो तो होना ही था,
जो हो रहा है वो भी होना ही है,
जो होगा वो भी होके रहेगा...
जब सब कुछ पहले से ही तय है,
तो फिर हम किस बात की चिंता कर रहे हैं..?

आँख बंद करके अपनी मन की आँखों से अपनी उजड़ी हुई पूरी दुनिया का तमाशा देखिये ना कि खुद तमाशा बनिए..
चुपचाप एक अंजान जिंदगी जियें,
जितना रोशनी में आयेंगे तो आपकी आँखें चुंधिया  जाएँगी,
खुद को अँधेरे में रखिये और मन का उजाला कभी खत्म ना होने दें,
सच में बड़ी मज़े से जिंदगी बसर होगी, आजकल तो अपना साया भी हमारा साथ नहीं देता,
किसी और का क्या गिला करें...

और अगर जियो तो जी भर के जियो,
लेकिन किसी और से उसकी साँसें छीनने की कोशिश मत कीजिये..
जो जैसा है उसे वैसा रहने दीजिये,
अगर वो आपको परेशान नहीं कर रहा,
तो आप कौन होते हैं दूसरों को ज़ख्म देने वाले..?
पहले अपने ज़ख्मों को तो भरिये,
जो आपको अपनों से मिले हैं,
जिन्हें आप खुशी का नाम देके छुपा रहे हैं...

किसी ने खूब कहा है...
​जब जब जिसे भूलने की कसम खाई है..​
​तब तब कुछ ज्यादा ही उसकी याद आई है..​
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