Sunday 16 July 2017

खाली दिमाग शैतान की कार्यशाला..!!


अपने दीवारों दर से पूछते हैं,
खुद के हालात हम घर से पूछते हैं..

क्यूँ इस काफिले में रहकर भी अकेले हैं हम,
एक एक हमसफर से पूछते हैं..

कितने लोग रहते हैं मेरे मकान में,
ये बात हम शहर भर से पूछते हैं..

ये दीवारें क्यूँ खड़ी हुईं, मेरे और अपनों के बीच,
हम दिन रात अपने मुकद्दर से पूछते हैं..

कहां कत्ल हो गए मेरे चांद और सूरज,
हम हर रोज़ उठकर, सहर से पूछते हैं..

क्या ख्वाब देख लेना भी कोई जुर्म है,
बस यही हम ज़माने भर से पूछते हैं..

ये मुलाकात कहीं आखरी तो नहीं,
जुदाई के डर से ये बात, हर रहगुज़र से पूछते हैं..

सार खाली दिमाग शैतान की कार्यशाला..
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