Wednesday 17 January 2018

बर्दाश्त नहीं होती..!!

मुझसे अब ये दुनियादारी बर्दाश्त नहीं होती,
नकाबों के पीछे छिपे चेहरों की मक्कारी बर्दाश्त नहीं होती..

मैंने देखे हैं इतनी सी उम्र में कई रंग ज़माने के,
मुझसे ये लोगों की अदाकारी बर्दाश्त नहीं होती..

मैंने फूँका है खुद को वफा में मगर,
मुझसे पीठ पीछे गद्दारी बर्दाश्त नहीं होती..

अमीर से रिश्ता चाहते हैं, गरीब से रखते हैं दूरी,
मुझसे आजकल लोगों की समझदारी बर्दाश्त नहीं होती..

सुख में हरदम साथ रहे जो, दुख आते ही भूल गए,
मुझसे अब ऐसी रिश्तेदारी बर्दाश्त नहीं होती..

लेकर आओ कोई नया मर्ज़ ज़माने का साहेब,
मुझसे अब ये पुरानी बीमारी बर्दाश्त नहीं होती..!!
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ख्वाहिशें..!!

ख्वाहिशों में दिल ना लगाना कभी,
ये कभी यहां तो कभी वहां नज़र आती हैं,
एक जगह हो जाता है काम पूरा,
तो दूसरी जगह नाच नचाती हैं,
कभी पहुंचाती हैं शिखर पर,
कभी गड्ढे में गिराती हैं,
ख्वाहिशों में दिल ना लगाओ साहेब,
ये ज़िंदगी भर रुलाती हैं..!!
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मुस्कराऊं कैसे..!!

उठकर तुम्हारी महफिल में आऊँ कैसे,
हाल मेरे दिल का तुमको बताऊँ कैसे..
खुश्क आँखों से भी अब तो,
अश्कों की महक आती है,
दर्दो-गम अपने ज़माने से छुपाऊँ कैसे..
तुम ही बता दवा दो अब,
दवा कोई दर्द मिटाने वाली,
कि मैं इस पीड़ा से आराम पाऊँ कैसे..
वो सुनता अगर मेरी,
तो मैं हाथ भी फैला लेता,
अब फरियाद भी लेेकर भला,
उसकी दहलीज़ पे जाऊं कैसे..
ज़िंदगी की मुश्किलों से घिरा हुआ हूँ साहेब,
मुस्कराना चाहूँ भी अगर तो मुस्कुराऊं कैसे..!!
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Tuesday 2 January 2018

मुझे कुछ पता नहीं है..!!

कैसा है बाहर मौसम,
मुझे कुछ भी पता नहीं है,
कब आई दीवाली कब गया मुहर्रम,
मुझे कुछ भी पता नहीं है..

इस ज़िन्दगी ने मुझको,
ये कैसेे दिन हैं दिखाए,
मन में खुशी है या गम,
मुझे कुछ भी पता नहीं है..

सब घूम रहे हैं बाहर,
मैं हूँ घर के भीतर,
कहां बाढ़ आई कहां गिरा बम,
मुझे कुछ भी पता नहीं है..

काट रहा हूँ वक्त अपना,
बस हालात के मुताबिक,
ज़ख्म बढ़ गया या हुआ कम,
मुझे कुछ भी पता नहीं है..

ज़िंदगी है शेर दर्द भरा,
या नायाब सी गज़ल कोई,
तुम्हें सुनाऊं क्या मेरे हमदम,
मुझे कुछ भी पता नहीं है..!!
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