Thursday 6 July 2017

परिचय..


सुना होगा तुमने किसी से, कि दर्द की एक हद होती है..

मिलो हमसे, कि हम अक्सर उस हद के पार जाते हैं..


अक्टूबर 2009, सर्वाइकल इंजुरी.. ज़िन्दगी की मौत से जंग,

फिर एक लंबा संघर्ष और मौत को हराकर घायल ज़िन्दगी बिस्तर तक सिमटकर रह गई..

फिर शुरु हुआ दर्द और तन्हाई का दौर, बेबसी और लाचारी का दौर, पल पल करीब आती मौत को महसूस करने की लाचारी, मदद करने के डर से अपनों को एक एक करके खुद से दूर जाते देखने की मजबूरी...


कहते हैं कि भगवान जो कुछ भी हमारे साथ करते हैं हमारे भले के लिए करते हैं..

ज़िन्दगी सीखते रहने का नाम है, और इन सब तकलीफों और मजबूरियों ने इस दुनिया के वो रंग और चेहरे दिखा दिये जो शायद हर इंसान को देखने को नहीं मिलते..हम हमारे जीवन को सिक्के के एक पहलू को देखकर ही काट देते हैं, और दूसरे से अंजान रह जाते हैं।


मैं रिश्तों की आलोचना या अनादर करने के पक्ष में नहीं हूँ मगर बीते नौ सालों में लाचारी की जिंदगी जीते हुए बहुत कुछ सीखने और महसूस करने को मिला है, दरअसल इस दुनिया में माँ को छोड़कर..बाकी सब रिश्ते एक दूसरे से अपेक्षाओं के रिश्ते हैं, हर रिश्ता आपसे कुछ ना कुछ अपेक्षा रखता है,अगर आप किसी की अपेक्षा पर खरे नहीं उतरे तो उसका आपसे कोई रिश्ता नहीं है।


दोस्तों मैं कोई कवि नहीं हूँ इसलिये कोई कविता लिखना नहीं आता मुझे..मगर अपने उन जज़्बातों को जाहिर करने के लिए जिन्हे कोई सुनने और समझने वाला नहीं है, उनको क्योंकि मैं कलम भी नहीं पकड़ सकता तो अंगूठे की मदद से फोन में उतार देता हूँ और दिल कुछ हल्का हो जाता है।

वो जज़्बात जो मेरे कमरे में, मेरे अंदर ही दम तोड़ते हैं हर रोज़, फिर उनका ज़हर फैलने लगता है मेरे अंदर..तो लिख देता हूँ...


मेरे लिये ये शब्द ही मेरे ज़ख्मों का मरहम हैं 'साहेब'


लफ्ज़ों की बनावट मुझे नहीं आती दोस्तों..

बस दिल से लिखता हूँ, बड़ी

 सीधी सी बात है..



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