अकेले हैं कमरे में बड़बड़ा रहे हैं,
अपने आप से ही हम लड़े जा रहे हैं..
अंदर से बहुत खुश हैं वो बेबसी पर हमारी,
जो बाहर से सहानुभूति दिखा रहे हैं..
ये कैसी मुसीबतों की आँधी चली है,
जलाए थे जो दिये, वो बुझे जा रहे हैं..
जो लिखा है तकदीर में, वो तो होकर रहेगा,
बस यही सोचकर हम जिये जा रहे हैं..
खैर छोड़ो, बारिश हुई है पकोड़े बने हैं,
अभी चाय और चटनी से वही खा रहे हैं..
अब ज़िंदगी की चिंता फिर कभी कर लेंगे साहेब,
अाज तो सुहाने मौसम के मज़े आ रहे हैं..!!
मूड स्विंग..
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