Saturday 8 July 2017

दो बूंद..


बाहर बारिश की दो बूंद पड़ते ही,
अंतर्मन की दीवारों पर,
उतर आती है सीलन..
और जम जाती हैं,
बेबसी, लाचारी,
और नाकामियों की पपड़ियाँ..
फिर ये बिगाड़ देती हैं,
मेरी कोशिशों का चेहरा..

वक्त के गुज़रते लम्हों से,
हाथ पसारे माँगता हूँ मैं,
चंद खुशियों की वजह...

पर आसान कहाँ है..?
कि जो चाहूँ.. वही मिले मुझे...!
-----🍁-----
..एहसास..

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