धूप बहुत है मेरे शहर में,
सावन का मौसम भेजो ना,
पानी से भरा मेरे नाम का,
कोई तो बादल भेजो ना..
मेरे आंगन के उस पेड़ की,
शाखों पर भी फूल खिलें,
खुशियों से सजाकर इंद्रधनुष सा,
सतरंगी आंचल भेजो ना..
क्यों मन के मंदिर में इनके,
अब तक ये उदासी पसरी है,
जिसे देख चहक उठें ये नन्हे मुन्ने,
उन मोरों के पेरों की पायल भेजो ना..
खामोशी के इस मंजर में,
बूंदों की आवाज़े गूंज उठें,
मेरे शहर की गलियों में भी,
बाज़ारों की हलचल भेजो ना..
चुप रहने की मुझे आदत नहीं,
मैं बोलने का आदी हूँ,
पर आखिर किस से बात करूँ,
मेरे जैसा कोई पागल भेजो ना..!!
-----🍁-----
..संजू।।
No comments:
Post a Comment