यूहीं अकेले में सोचता हूँ कभी कभी,
कि अचानक जो बदल जाए मेरी जिंदगी,
तो क्या बात हो...
ख्वाबों ख्यालों में रोज मिलता हूँ जिनसे,
वो हकीकत में भी मुझसे मिलने आऐं,
तो क्या बात हो...
मतलब के लिए ही एक दूसरे को,
ढूंढ़ते हैं सब लोग यहां,
कोई बिन मतलब भी कभी मिल जाए,
तो क्या बात हो...
मौत के बाद तो,
सभी करते हैं तरीफ यहां,
मुझे जीते जी कोई टूटकर चाहे,
तो क्या बात हो...
वो लोग भी,
जो करते हैं नफरत मुझसे,
कभी जो आकर गले से लगाऐं,
तो क्या बात हो...
अपने ज़िंदा रहने तक,
जो खुशी ना दे सका किसी को,
वो किसी को मेरी मौत से मिल जाए,
तो क्या बात हो..
यूहीं अकेले में सोचता हूँ कभी कभी..!!
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