Wednesday 30 August 2017

फालतू बात..!!

जुबां लड़ाता है मुझसे,
सवाल जबाब करता है,
आजकल मेरा बेटा,
शैतानियां बेहिसाब करता है..

छोटा है वो अभी,
अमीरी गरीबी कहां पहचानता है,
वो तो बस आए दिन,
नई नई चीज़ों की,
ख्वाहिशात करता है..

क्यों आते नहीं मेहमां घर पे,
क्यों जाते नहीं हम कहीं घूमने,
दिनभर बस इसी तरह के,
आड़े टेड़े सवालात करता है..

मेरी समझाईशों को अभी वो,
शायद समझ नहीं पाता,
सोचता होगा कैसा बाप है,
शेरो शायरी में हर बात करता है..

मेरी बातें तो अक्सर,
घरवाली को भी समझ नहीं आतीं,
कहती है पागल हो गया ये आदमी,
दिनभर पड़ा जाने क्या क्या,
बकवास करता है..!!
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    संजू

Sunday 6 August 2017

टूटा हुआ दिल..!!


कोई कैसा है हम सफर,
ये अंदाज़ा मत लगाओ,
वक्त बता देगा खुद ब खुद,
तुम बस अपना फर्ज़ निभाओ..

जो मतलबों की यारी है,
जो उम्मीदों के रिश्ते हैं,
डूब ही जाने हैं एक दिन,
जब चलेगी मुसीबतों की नाव...

ये ज़रूरी तो नहीं है,
कोई हमेशा ही रहे साथ,
ये सफर की दोस्ती है साहेबान,
इसे रोग मत बनाओ...

बहुत मिल जाऐंगे ज़िंदगी में
खुशी में साथ देने वाले,
मगर साथी तो वही है सच्चा,
जिसको दिख जाऐं तुम्हारे घाव..

मिल चुकी है कई बार,
वफादारी की सज़ा मुझे,
फिर से भरोसे की उम्मीद देकर,
मेरे ज़ख्मों को ना सहलाओ..

धोखे के अनगिनत तीरों से,
बिखर चुका है वज़ूद मेरा,
भूल गया हूँ खुद को कब का,
मुझे आईना मत दिखाओ..

कोई कैसा था, कोई कैसा है,
हर इंसान अलग है यहां,
जिनसे तुम्हारा दिल ना मिले,
उनसे हाथ भी मत मिलाओ..

मुझे क्या हक है साहेब,
कि मैं किसी और से खुशियां मांगू,
मैं दर्दो गम में जी लुंगा अपने,
मुझे हमदर्दी मत जताओ..

सुना है महारत हासिल है तुम्हें,
रिश्ते तोड़ने और जोड़ने में,
ये रहा मेरा टूटा हुआ दिल,
ज़रा इसे जोड़कर दिखाओ..
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Friday 4 August 2017

कैसे चलेगा..!!!!


इस कदर ना किसी को सताया करो,
वक्त पर कभी तो मिलने आया करो..

बड़े मशरूफ रहते हो, ये मालूम है मगर,
कभी तो हमें भी याद कर जाया करो.

भले सामने हो तुम्हारे कोई भी कश्मकश,
हालात ए दिल अपना, हमें भी सुनाया करो..

ये माना कि रहते हैं तुम्हारे घर से बहुत दूर हम,
मगर हाल हमारा, कभी तो पूछ जाया करो..

पहले झांको तुम अपने दिल में,
उंगलियां यूं ना हमपे उठाया करो..

शायरी करने से तो पेट भरने वाला नहीं,
कैसे चलेगा साहेब.. कुछ तो कमाया करो..!!
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एहसास-ए-मोहब्बत..!!


यकीनन उधर तो होती होगी,
मगर इधर नहीं होती,
मुझे बाहर की दुनिया की,
कोई खबर नहीं होती..

अंधेरा ही रहता है,
हरदम मेरे आसपास,
रात आकर गुज़र जाती है,
मेरी मगर सहर नहीं होती..

मैंने सब दुख जहाँ के देखे हैं
बेकद्री भी इस कदर नहीं होती,
ज़ख्म दिल का भरता नहीं दिखता,
कोई आह इतनी बेअसर नहीं होती..

जुगनू हैं, चाँद है, सितारे हैं,
शमा कोई रातभर की नहीं होती,
बेकरारी अब सही नहीं जाती,
तन्हाई किसी की हमसफर नहीं होती..

मुंतज़िर हूँ मैं कब से,
एहसास-ए-मोहब्बत का,
अब साथ चाहिये किसी का साहेब,
यूं अकेले ज़िंदगी बसर नहीं होती..!!
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