जाड़ों की गुनगुनी धूप,
गर्मियों की शामें,
सब मुझे मायूस करते हैं,
मैं कुछ खो सा जाता हूँ,
कभी कुछ एहसास,
और कभी मेरे जज़्बात,
हावी होते रहते हैं दिल पर..
और फिर जब सावन आता है,
सब कुछ बह सा जाता है,
मुझे महसूस होता है,
खुद का खुद में सिमटना,
और दिल सुकूं सा पाता है..
मगर इन काले बादलों की गरज में,
मेरी ज़िन्दगी का एक अधूरा किस्सा,
हर बार अनसुना रह जाता है..!!
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