सावन के इस सुहाने मौसम में,
कुछ तबियत सी उदास रहती है,
गला सूखा सूखा सा हो जाता है,
मुझे मोहब्बत की प्यास रहती है..
जब भी बादल घुमड़ते हैं,
मन मचल मचल सा जाता है,
बंज़र पड़ी है इस दिल की ज़मीन,
मुझे बारिश की आस रहती है..
कोई तो कर लो दुआ,
कि मुझे मोहब्बत नसीब हो,
मेरे दिल के जख्मों को भी,
थोड़े मरहम की तलाश रहती है..
मिले गर जो मौका,
तो खुद में छुपा लूँ उसको,
वो जो दिनभर 'साहेब'
मेरे आसपास रहती है..!!
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(खाली दिमाग-शैतान की कार्यशाला)
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