Thursday 19 July 2018

कहने को अल्फाज़ नहीं है,
लिखने को जज़्बात नहीं है,
और दिमाग जैसे सो रहा है,
आज शायद मुझे कुछ हो रहा है..

हाथ पैरों में जान नहीं है,
करने को कुछ काम नहीं है,
सन्नाटा दिल में नश्तर चुभो रहा है,
आज शायद मुझे कुछ हो रहा है..

जिस्म में जैसे सांस नहीं है,
बिल्कुल भूख और प्यास नहीं है,
उल्टी का सा जी हो रहा है,
आज शायद मुझे कुछ हो रहा है..

जीवन का एहसास नहीं है,
इक पल का विश्वास नहीं है,
मन जाने कहां खो रहा है,
आज शायद मुझे कुछ हो रहा है..

बस यूं ही...
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