Tuesday 2 January 2018

मुझे कुछ पता नहीं है..!!

कैसा है बाहर मौसम,
मुझे कुछ भी पता नहीं है,
कब आई दीवाली कब गया मुहर्रम,
मुझे कुछ भी पता नहीं है..

इस ज़िन्दगी ने मुझको,
ये कैसेे दिन हैं दिखाए,
मन में खुशी है या गम,
मुझे कुछ भी पता नहीं है..

सब घूम रहे हैं बाहर,
मैं हूँ घर के भीतर,
कहां बाढ़ आई कहां गिरा बम,
मुझे कुछ भी पता नहीं है..

काट रहा हूँ वक्त अपना,
बस हालात के मुताबिक,
ज़ख्म बढ़ गया या हुआ कम,
मुझे कुछ भी पता नहीं है..

ज़िंदगी है शेर दर्द भरा,
या नायाब सी गज़ल कोई,
तुम्हें सुनाऊं क्या मेरे हमदम,
मुझे कुछ भी पता नहीं है..!!
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