Wednesday 17 January 2018

बर्दाश्त नहीं होती..!!

मुझसे अब ये दुनियादारी बर्दाश्त नहीं होती,
नकाबों के पीछे छिपे चेहरों की मक्कारी बर्दाश्त नहीं होती..

मैंने देखे हैं इतनी सी उम्र में कई रंग ज़माने के,
मुझसे ये लोगों की अदाकारी बर्दाश्त नहीं होती..

मैंने फूँका है खुद को वफा में मगर,
मुझसे पीठ पीछे गद्दारी बर्दाश्त नहीं होती..

अमीर से रिश्ता चाहते हैं, गरीब से रखते हैं दूरी,
मुझसे आजकल लोगों की समझदारी बर्दाश्त नहीं होती..

सुख में हरदम साथ रहे जो, दुख आते ही भूल गए,
मुझसे अब ऐसी रिश्तेदारी बर्दाश्त नहीं होती..

लेकर आओ कोई नया मर्ज़ ज़माने का साहेब,
मुझसे अब ये पुरानी बीमारी बर्दाश्त नहीं होती..!!
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