Monday 18 December 2017

खामोश शाम..!!

शाम खामोश होने को है,
और रात गुफ्तगू करने को आतुर..
इस छत के नीचे ना जाने कितनी शामें,
ऐसे ही बीत चुकी हैं,
दीवारों को तकते हुए..

मेरी खिड़री के बाहर वाला वो पेड़,
आज भी आवाज लगाता होगा,
कुछ उड़ते परिदों को,
कि आओ ! बसेरा मिलेगा तुम्हें..
पर परिंदे उड़ जाते होंगे दूर उस ओर,
अपने साथी संग, सुनसान जंगल में,
और रह जाती होंगी पत्तों की चुप्पी..

आसमां तारों से भर चुका होगा,
सुबह की बदली का एक टुकड़ा,
बेतरतीब सा फैला छत पर,
कर रहा होगा इन्तज़ार चाँद का..
यकीनन ऐसे ही होती होंगी ना,
अब भी शामें...!!
------🍁------
..एहसास..

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