Monday, 18 December 2017

खामोश शाम..!!

शाम खामोश होने को है,
और रात गुफ्तगू करने को आतुर..
इस छत के नीचे ना जाने कितनी शामें,
ऐसे ही बीत चुकी हैं,
दीवारों को तकते हुए..

मेरी खिड़री के बाहर वाला वो पेड़,
आज भी आवाज लगाता होगा,
कुछ उड़ते परिदों को,
कि आओ ! बसेरा मिलेगा तुम्हें..
पर परिंदे उड़ जाते होंगे दूर उस ओर,
अपने साथी संग, सुनसान जंगल में,
और रह जाती होंगी पत्तों की चुप्पी..

आसमां तारों से भर चुका होगा,
सुबह की बदली का एक टुकड़ा,
बेतरतीब सा फैला छत पर,
कर रहा होगा इन्तज़ार चाँद का..
यकीनन ऐसे ही होती होंगी ना,
अब भी शामें...!!
------🍁------
..एहसास..

Sunday, 17 December 2017

एक एहसास..!!

करी सेवा जिसने मेरी उम्रभर,
अपना सुख चैन छोड़कर,
मैं निकम्मा, कभी एक ग्लास पानी भी,
उसे पिला ना सका..

मैं भी उसका सहारा हूँ,
ये एहसास कभी दिला ना सका,
मेरे लिये अपना घर छोड़कर आने वाली को,
मैं सुकुन के दो निवाले भी खिला ना सका..

नजरें उसकी थकी हुई आंखों से,
कभी मिला ना सका,
वो दर्द सहती रही खटिया पे कल रात,
और मैं उसे सहारा देकर उठा ना सका..

बीमारी में भी कभी,
बिस्तर से उसे शिफा दिला ना सका,
खर्च के डर से मैं कम्बखत,
उसे कभी बड़े अस्पताल ले जा ना सका..

जो जीवनभर प्यार के रंग,
पहनाती रही मुझे,
उसे दिवाली पर कभी,
दो जोड़ी कपडे दिला ना सका..

कल रात से लेकर अब तक सोच रहा हूँ,
जिसने मेरे लिये अपना जीवन लगा दिया,
उसके प्रति मैं अपनी ज़िम्मेदारी,
क्यों सही से निभा ना सका..!!
------🍁------
एक एहसास..